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Sunday, December 31, 2017

सुनो बे दो हजार अट्ठारह



सुनो भई दो हजार अट्ठारह,


देखो, आराम से आना! लगे कि कुछ नया आ रहा है. फिर वही अखबार मत लाना जिसे ले जाएगा कबाड़ी वाला. लोग तो हैं ही सट्टेबाज, सत्ता की मलाई के लिए खांचा खीचने के लिए तैयार बैठे हैं. फेस्टिवल वाले देश में फेस्टिवल का धरम बताएंगे, किसी किसी दिन की जाति बतावेंगे और बंसी बजैइया के देश में बेशर्म इज्ज़त के नाम पे उसी पेड़ पे लटकावेंगे जहाँ उ चोर कपड़े लेके बैठे रहा!


सुनो, इस बार मुहल्ले में भी आना चमकदार टीवी से उतरकर. देखों यों आना कि नालियाँ साफ हो जाएं, अस्पताल में दवाई मिले और पाठशाला में मिलें गुरुजी. मौका लगे तो छह लाख गावों में शैम्पू की छोटी छोटी सैशे में समाकर आना, पर आना. पता करना कि किसी गांव में सचमुच बिजली रहती कितनी देर तक है. देखना, कि नहर में पूआल रखी है या पानी भी आता है. किसी से चुपके से पूछना कि पिछले चुनाव में जो मर्डर हुआ, उसमें कुछ हुआ या फिर सब विकास ही है.


अच्छा रुको रे दो हजार अट्ठारह! जरा विकास को पुचकार देना, बेचारा रूखा सूखा हुआ है. सब उसे हर सीजन में नए कपड़े पहनाकर घुमाते हैं सर पे, पर बेचारा दशकों से भूखा है. सड़क की पटरियों पे इधर उधर पोस्टर बैनर के नीचे कहीं कहीं कुछ बोतलों में चमकती अर्थव्यवस्था के आंकड़े चाटने से भला पेट भरता तो क्या बात थी. उसे बताना कि तुझे रोपेंगे किसी दिन रे विकास, अभी तो नारों से ही सेंसेक्स और रेटिंग में ज्वार आ जाता है.


लड़कियों के कान में चुपके से कह दो कि ये 21 वीं शती अब बालिग हुई. पढ़ें, लड़ें, कमाएँ, प्यार करें और जिएं! कितने ही जगह लड़कियों तुम्हारा अभी इन्तजार है, कितना ही अभी चमकना है! तुम्हारे पास सब कुछ पाने को ही तो है और लड़कों मेहनत करों, लड़कियाँ भी पुरजोर साथ देने को तैयार हैं.


नया भारत, सरकार के बनाने से नहीं बनेगा कभी, कह दो इस देश के गरम खून वाले बहुसंख्यक युवाओं से. नए साल जो तुम सचमुच नए हो तो नई सोच का तड़का लगा देना युवाओं में, ताकि वो सोच सहम जाएं जो विभाजन की फसल पैदा करती है.


यार, देश अपना अभी भी बहुतों से बहुत मायनों में पीछे है, कह दो हे नए साल हम सबसे कि हम सब मिलजुलकर इसे तरक्की के एक नए पैमाने पर ले जाएंगे!


नवल वर्ष की शुभकामनाएँ!




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