साभार: अहा ज़िंदगी, भास्कर |
“आपने तो उस दिन हमारे दिलों की धड़कनें
बार-बार ऊपर-नीचे कीं।”
1975 में संसद की कार्यवाही रुकवाकर भारत-पाकिस्तान हॉकी फाइनल मैच देखने वालीं प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने मशहूर उद्घोषक जसदेव सिंह जी से अपनी मुलाकात में ये उपरोक्त कथन कहे थे। जसदेव सिंह जी की गहरी आवाज के हर उतार-चढाव पर हर हिन्दुस्तानी के दिल की धड़कनें अपनी लय फिर पाने के लिए बेताब हो जाती थीं। बीते 25 सितम्बर 2018 से अब इस आवाज की बस यादें महकेंगी जो कुछ यों शुरू होती थीं:
“मै जसदेव सिंह बोल रहा हूँ !”
वो दौर था जब रेडियो ही वह जादुई पिटारा था जिसे कभी भी बुद्धू बक्सा नहीं कहा गया और जो अपनी आवाज के जरिये हर आमोखास के कानों में मनोरंजन का गूँज भर देता था। कान सुनते थे, आँखें देखने लग जाती थीं, मन कुलाँचे लेने लगता था और ज़ेहन में हर एक लफ्ज रुई के फाहों के मानिंद उतरते चले जाते और फिर एहसासों के मखमली तसव्वुर जब-तब उभर हर दिल को गुदगुदाते रहते। रेडियो के कद्रदान और खेलप्रेमी ये जानते हैं कि ऐसा तब जरूर होता जब अल्फ़ाज़ जसदेव सिंह के हों। हॉकी का खेल एक तेज खेल है। इसकी कमेंट्री करने के लिए आवाज में वही जोश, वही फुर्ती होनी चाहिए जो एक उम्दा हॉकी खिलाड़ी में होती है। यह एक मुमकिन बात न मानी जाती जो हमारे देश में जसदेव सिंह जैसा शुद्ध, स्पष्ट उच्चारण वाला और हिंदुस्तानी जुबान का कमेंटेटर न पैदा होता।
18 मई, 1931 को बौंली, राजस्थान में जन्में जसदेव सिंह की शिक्षा पंजाबी, उर्दू और अंग्रेजी में हुई पर महात्मा गाँधी की अंतिम यात्रा के दिन जब रेडियो पर उन्होंने मशहूर अंग्रेजी प्रस्तोता मेलविल डी मेलो की आवाज सुनी, तो ठान लिया कि वे हिंदी में ही कमेंट्री करेंगे। धुन के पक्के बीए-एलएलबी जसदेव सिंह का सफर 1955 में आकाशवाणी जयपुर से शुरू हुआ। जसदेव सिंह जी को रेडियो और दूरदर्शन पर बोलने की हर प्रचलित विधा का अनुभव था। समाचार वाचक, खेल उद्घोषक, संचालन, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय अवसरों के प्रस्तोता, जवाहर लाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री, संजय गाँधी, इंदिरा गाँधी के अंतिम यात्रा के वर्णनकार की भूमिका के साथ ही जसदेव सिंह जी ने देश के पहले अंतरिक्ष यात्री के रूप में राकेश शर्मा की यात्रा का अप्रतिम रोमांच भी देशवासियों से साझा किया। पाकिस्तान में भी आपकी लोकप्रियता का आलम यह था कि टेलीविजन पर भले ही खेल देखा जाता लेकिन आँखों देखा हाल सुनने के लिए ऑल इंडिया रेडियो ही ट्यून किया जाता। आपको गुरु नानक देव के जन्मोत्सव कार्यक्रम के वर्णन के लिए पाकिस्तान के ननकाना साहब में भी आमंत्रित किया गया। पद्म श्री एवं पद्म भूषण से सम्मानित कमेंटेटर जसदेव सिंह की आवाज और हॉकी का खेल एक ज़माने में एक-दूसरे के पर्याय बन चुके थे। हॉकी के अलावा उन्होंने क्रिकेट, बैडमिंटन, टेनिस के कई मशहूर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी कमेंट्री करके अपने आवाज का लोहा मनवाया। आपको नौ ओलंपिक आयोजन, आठ हॉकी विश्व कप एवं छह एशियाड गेम्स में बतौर कमेंटेटर काम करने का गौरव प्राप्त है। लोग उनके आवाज के यों दीवाने थे जैसे वे उम्दा खिलाडियों के कौशल के दीवाने होते थे। 1988 सियोल ओलंपिक में उन्हें सर्वोच्च पुरस्कार ‘द ओलंपिक ऑर्डर’ से नवाजा गया। रेडियो की दुनिया की सबसे मशहूर तिकड़ी, देवकीनंदन पांडेय, अमीन सयानी, जसदेव सिंह से ही बनती है और बनती रहेगी।
उनके आवाज की खनक खेलों के हर उतार-चढाव को बाखूबी बयां करती थी तो स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस के मौके पर देश के जनगणमन को राष्ट्रीय स्वाभिमान से ओतप्रोत कर देती थी। 1962 की हार से निराश जनता, 1963 की वह परेड कत्तई नहीं भूल सकती थी जब नेहरू स्वयं पैतीस-चालीस सांसदों के साथ परेड में शामिल थे और जसदेव सिंह की आवाज ने जन-जन के मन तक दस्तक दे दी थी। लगभग उन्चास बार जसदेव जी ने ऐसे राष्ट्रीय अवसरों पर कमेंट्री की थी। जसदेव सिंह जी को अपने प्रेरक मेलविल डी मेलो के साथ मिलकर भी कमेंट्री का मौका मिला और वे मशहूर क्रिकेट कमेंटेटर ए. एफ. एस. तलयारखान की तारीफों की बड़ी कद्र करते थे। जसदेव सिंह जी की आवाज में एक मनमाफ़िक रवानगी थी जो उनके जीवन में भी दिखती थी। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी गीता बजाज की पुत्री कृष्णा से शादी की थी और उस समय इस पंजाबी व मारवाड़ी की शादी की बड़ी चर्चा भी हुई थी। जीवन के प्रति कितने जिंदादिल थे कि वे बिटिया प्रीती सिंह के लिए अपने हर विदेशी दौरों से गुड़िया लाना नहीं भूलते थे, इसका एक बेहतरीन कलेक्शन उनके यहाँ देखा जा सकता था। एक हॉलीवुड फिल्म ‘द विंड कैननॉट रीड’ में आपने अभिनय भी किया और इसके साथ ही लेखक जसदेव सिंह के रूप में भी आपने अपना एक अलग ही मुकाम बनाया। धर्मयुग जैसी अपने समय के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सैकड़ों खेल और अन्य विषयों पर आपने आलेख लिखे। पाँच किताबें भी जसदेव जी ने लिखीं और अपनी जीवनी ‘मै जसदेव सिंह बोल रहा हूँ’ भी पूरी की जिसमें जीवन के तमाम रोचक किस्से मिलते हैं।