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Thursday, October 5, 2017

चीन की ओबोर नीति ओर भारत-अमरीका सहयोग

डॉ. श्रीश पाठक
भारत की पहली महिला रक्षा मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण की हालिया अमरीका यात्रा के दौरान अपने समकक्ष रक्षा सचिव जेम्स मैटिस के साथ हुयी मुलाकात खासा सफल जान पड़ती है l जेम्स मैटिस ने बेहद स्पष्ट शब्दों में पाकिस्तान-चीन आर्थिक गलियारे की आलोचना करते हुए भारत का पक्ष दुहराया कि यह गलियारा एक विवादित भू-भाग का हिस्सा है और कोई भी राष्ट्र एकतरफा किसी क्षेत्रीय मेखला ओर मार्ग पहल (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव) की घोषणा नहीं कर सकता l अब निश्चित ही अमरीका एशिया में अपने क्षेत्रीय हितों के लिए ठोस भूमिका निभाने को तैयार दिखता है l इस भूमिका में भारत स्वाभाविक रूप से अमरीका का रणनीतिक साझीदार है l भारत ने भी जतला दिया है कि वह एशिया ओर दक्षिण एशियाई मामलों में अमरीका के साथ मिलकर अपने राष्टीय हितों का सरंक्षण करने को तत्पर है l
दरअसल चीन की पाकिस्तान के साथ आर्थिक गलियारे बनाने की कोशिश उसकी एक अतिमहत्वाकांक्षी परियोजना ओबोर नीति का एक हिस्सा है l ओबोर नीति चीन के मौजूदा राष्ट्रपति जी जिनपिंग की सामरिक दिमाग की उपज है l घरेलू राजनीति में भ्रष्टाचार पर बेहद ठोस कदम उठाकर जी जिनपिंग ने अपने देश में माओ के बाद सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तित्व की छवि गढ़ ली है और विदेश नीति के क्षेत्र में भी वे चीन को आधुनिक वैश्विक व्यवस्था में सर्वाधिक प्रमुख स्थान दिलाना चाहते हैं l ओबोर नीति में जिनपिंग प्राचीन रेशम मार्ग को पुनर्जीवित करने की वकालत कर रहे हैं l प्राचीन रेशम मार्ग जहाँ स्वाभाविक तौर पर उपजा भुमिबद्ध व्यापारिक मार्गों का संजाल था वहीँ ओबोर नीति में चीन ने इसमें सामुद्रिक व्यापारिक मार्ग को भी सम्मिलित किया है l यह मेखला विवादित इसलिए है क्यूंकि यह एकतरफा चीन द्वारा प्रायोजित ओर चिन्हित भुमिबद्द एवं सामुद्रिक व्यापारिक मार्ग है जो अपने प्रारूप में तीन महाद्वीपों की क्षेत्रीय संप्रभुता ओर सामुद्रिक संप्रभुता के साथ साथ व्यापारिक संबंधों पर असर डालेगी l यकीनन इससे भारत के राष्ट्रहित पर तो आंच आयेगी ही अपितु विश्वशक्ति अमरीका की यूरेशिया में उपस्थिति को भी चुनौती मिलेगी l चीन की ओबोर नीति यदि जमीन पर सफल होती है तो यह एक मेखला का निर्माण करेगा जो चीन के जियान से निकलकर मध्य एशिया के बीचोबीच होते हुए पश्चिमी एशिया तक पहुंचेगी, फिर टर्की होते हुए यूरोप में प्रवेश कर इटली को जोड़ेगी l यह मेखला यहाँ से भूमध्यसागर से निकलकर लाल सागर होते हुए हिन्द महासागर में पहुंचेगी, फिर प्रशांत क्षेत्र से होते हुए अंततः चीन के फुझु से मिल जायेगी l


चीन की मंशा चाहे जो हो, पर अमरीका की चिंता यह है कि इससे उसकी एशिया ओर यूरोप में उसकी क्षेत्रीय उपस्थिति को चुनौती मिलेगी l भारत के लिए भी यह मेखला शुभ नहीं कही जा सकती और इसलिए ही  संप्रभुता के मुद्दे का हवाला देते हुए अभी बीते मई माह में ‘एक मेखला एक मार्ग’ फोरम की बैठक में भाग लेने का निमंत्रण भारत ने स्वीकार नहीं किया l चीन की ओबोर नीति भारत के लिए एक प्रत्यक्ष चुनौती है अथवा कम से कम देश की अपनी सामरिक तैयारियों के लिहाज से इसे चुनौती के रूप में ही लिया जाना चाहिए l यह चुनौती भारत के हितों को एशिया में, हिन्द महासागर क्षेत्र में, प्रशांत क्षेत्र में और खासकर विवादित पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में असुरक्षित बनाता है, जिसे यकीनन भारत नहीं चाहेगा l

भारत ने यकीनन यह रणनीतिक चुनौती को भांपते हुए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं l अमरीका का स्पष्ट शब्दों में भारत के पक्ष का समर्थन करना ओर खुलकर ओबोर नीति की आलोचना करना भारत के सफल प्रयासों की पुष्टि भी करता है l भारत द्वारा आयोजित मालाबार अभ्यास में अमरीका के साथ साथ जापान का जुड़ना भी एक शुभ संकेत है जिससे भारत की सामरिक स्थिति को बल मिलता है l एशिया में रूस, चीन, नार्थ कोरिया, पाकिस्तान का सक्रिय होकर संबंधों का नया आयाम उकेरना एक नयी स्थिति है जिसमें अमरीका भारत, जापान, दक्षिण कोरिया ओर आस्ट्रेलिया के साथ मिलकर शक्ति संतुलन साधने की कोशिश अवश्य करेगा l यह स्थिति भारत के अपने हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है l अमरीका के साथ संबंधों की यह नवीन परिस्थितियां निश्चित ही भारत के साथ सहयोग के कई दुसरे संभावनाओं के दरवाजे भी खोलेगी l  अमरीका भारत के साथ संबंधों के नए वितान के लिए प्रतिबद्ध है यह उसके भारत के लिए नए राजदूत के चयन से भी झलकती है l हार्वर्ड शिक्षित केनेथ जस्टर बेहद अनुभवी राजनयिक हैं जिन्हें दोनों बुश प्रशासन में काम करने का अनुभव है ओर वे ट्रंप प्रशासन में भी महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मामलों की समिति के सलाहकार रहे हैं l यह चयन महत्वपूर्ण है और केनेथ जस्टर के हालिया बयान भारत के लिहाज से बेहद उत्साहजनक हैं जिनमें भारतीय हित में अमरीकी हित का संलग्न होना कहा गया है l

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