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Sunday, July 29, 2018

जहाँगीर रतनजी दादाभाई टाटा (जेआरडी)

साभार: दैनिक भास्कर 

वो जमाना था जब समझा जाता था कि रूस को कभी पराजित नहीं किया जा सकता था, क्योंकि कोई भी शक्तिशाली सेना यदि इसके भीतर प्रवेश कर भी ले तो भी रूस के भीमकाय भूगोल में उसे उलझना ही था। लेकिन पिद्दी सा जापान रूस के लिए मुसीबत बन अगले साल तक उसे हराने वाला था। जर्मन राजा अपने इरादों से यूरोप के बड़े खिलाड़ी फ़्रांस और ब्रिटेन के साम्राज्यवादी बुनियादों को हिलाने की फ़िराक में था। ऐसे में फ़्रांस, ब्रिटेन के साथ आपसी साम्राज्यवादी सघर्षों को तनिक विराम दे, ‘ऐंतांत कोर्डीएल’ के समझौतों को संपन्न कर राहत की साँस ले रहा था। कला और फैशन के लिए मशहूर फ़्रांस, चित्रकला की फ़ॉविज्म धारा को अपना रहा था जिसका यकीन था कि कैनवस पर मानव मनोभावों को उकेरना आवश्यक है भले ही असंगत रंगों का चटख प्रयोग करना पड़े । बेहद लोकप्रिय बाईसिकिल रेस प्रतियोगिता ‘टूर डी फ्रांस’ के दूसरे संस्करण का कम उम्र का विजेता हेनरी कोर्नेट अपनी बुलंदियों पर था। अमेरिका के ओरविल व विलबर राइट जब अपने हवा से भारी एयरक्राफ्ट फ्लायर-दो को सफलतापूर्वक उड़ा चुके थे तो उसके सात महीने के बाद २९ जुलाई १९०४ के पेरिस में भारत के सबसे महत्वपूर्ण पारसी उद्योगपति जमशेतजी टाटा के ममेरे भाई रतनजी दादाजी टाटा और भारत की सबसे पहली कार चलाने वाली फ्रेंच महिला सुज़ैन सूनी ब्रिय्ररे के घर जिस भारतरत्न का जन्म हुआ उसे भविष्य के स्वतंत्र भारत में भारतीय विमानन का पिता कहा जाने वाला था। जहाँगीर रतनजी दादाभाई टाटा की ज़िंदगी भी बिलकुल उलटफेरों से भरी बींसवी शती की तरह रही और अंततः यह जहाँगीर, जहाँ को जीतने वाला ही साबित हुआ। जेआरडी टाटा का सुखद बचपन पेरिस की गलियों में बीता और उनकी पहली भाषा बनी फ्रेंच। वहाँ स्कूल में हालाँकि अध्यापक उन्हें इजिप्टियन बुलाते रहे। वहीं गर्मी की एक छुट्टी में छोटे जेआरडी टाटा की मुलाकात फ्रेंच विमानन के पिता लुइस ब्लेरिओट से हुई और फिर जेआरडी उस आकाशीय रोमांच के जीवन भर के दीवाने हो गए। फ़्रांस, जापान, इंग्लैंड की अपनी प्रारम्भिक शिक्षा के बाद जेआरडी का इरादा आगे इंजीनियरिंग पढ़ने का था कि विश्वयुद्ध के सायों ने फ़्रांस को अपने युवा नागरिकों के लिए कानून बनाकर एकवर्षीय सेनासर्विस करना अनिवार्य कर दिया। चूँकि जेआरडी को फ्रेंच आती भी थी और वे इसका टंकण भी जानते थे तो उन्हें कर्नल का सचिव बनाकर भेजा गया। इसके तुरत बाद १९२५ में पिता ने व्यवसाय सम्हालने के लिए जेआरडी को भारत बुला लिया और बताते हैं कि जिस फ्रेंच टुकड़ी में जेआरडी थे, वह अपने मोरक्को अभियान से कभी वापस नहीं आ सकी। 

भारत आने के चौथे साल जेआरडी ने भारतीय नागरिकता ली और भारत के पहले कामर्शियल पायलट बन गए। जेआरडी ने १९३२ में ‘टाटा एंड संस’ में विमानन विभाग की नींव रखी जो आगे चलकर ‘टाटा एयरलाइंस’ और फिर ‘एयर इंडिया’ बनकर भारत की पहली एयरलाइंस कम्पनी बनी। ३४ साल की उम्र में उन्हें टाटा एंड संस का चेयरमैन बनाया गया और अगले पचास साल में जेआरडी ने टाटा की ६२ करोड़ की इस कम्पनी को अपने रिटायर होने तक १०,००० करोड़ की कम्पनी बना दिया। जेआरडी ने जब टाटा एंड संस की कमान सम्हाली तो इसका व्यवसाय कुल १४ एंटरप्राइजेज में सिमटा था और जब कम्पनी के चेयरमैन पद को छोड़ा तो तकरीबन ९५ एंटरप्राइजेज पर काम फ़ैल चुका था। जेआरडी टाटा ने टाइटन, वोल्टास, टाटा टी, टीसीएस, टाटा एयरलाइंस (एयर इंडिया), टाटा मोटर्स, टाटा कम्प्यूटर सेंटर, फार्मा, केमिकल्स, आदि कई सेक्टर्स में टाटा का काम फैला दिया।  

जेह (जेआरडी का प्यार का नाम) को महज एक सफल कारोबारी की तरह याद करना ज्यादती है। उनका व्यक्तित्व कहीं इससे बहुत आगे जाकर ठहरता है। जेह को ईश्वर ने एक सुखद बचपन दिया था और जेह जीवन भर अपनी कम्पनी और देश को एक परिवार की तरह देखते रहे। कम्पनी में उन्होंने जो श्रम-सुधार किये वे अपने समय से इतने आगे थे कि पूरे भारत में अभी वे सुधार पूरी तरह लागू नहीं हो सके हैं। सवेतन अवकाश (पेड लीव), कर्मचारी कल्याण योजना, एच. आर. विभाग, निश्चित काम के आठ घंटे, निःशुल्क कर्मचारी चिकित्सा, कर्मचारी प्रोविडेंट फंड, दुर्घटना भत्ता आदि सारे कदम तो ऐसे थे कि जब वे कम्पनी में लागू किये गए तो वे अमेरिका जैसे देशों के भी विधान में नहीं थे। उनकी कारपोरेट एथिक्स ऐसी थी कि करछूट की कोई योजना को अपनाना उन्हें पसंद नहीं था और देशसेवा के तर्क से वे अपने वकील तक को चुप करा देते थे। उनका हर वक्त ये कहना था कि कारपोरेट जगत को अपनी समृद्धि के हिसाब से देशसेवा व समाजसेवा में अपनी भूमिका बढ़ानी चाहिए। जेह के नेतृत्व में टाटा ने कई वैज्ञानिक, सामाजिक, कला आदि प्रक्रमों को बढ़ावा दिया। टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च, टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ़ सोशल साइंस, नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ़ एडवांस्ड साइंसेज, नेशनल सेंटर फॉर परफार्मिंग आर्ट्स, फैमिली प्लानिंग फाउंडेशन आदि जैसे कई राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थानों की स्थापना, उनका सफल संचालन और उनका आधुनिक भारत के विकास में निर्विवादित योग,  जेआरडी की अपने देश के प्रति उत्कट सामाजिक प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती है।      

जेआरडी द्वारा स्थापित इंस्टीच्यूट ऑफ़ साइंस, बैंगलोर से १९७४ में कंप्यूटर साइंस से शोध पूरा करने के बाद एक मेधावी छात्रा सुधा कुलकर्णी जब अमेरिका में नौकरी करने की सोच रही थीं, तभी उन्होंने इंजीनियर्स जॉब के लिए अपने हॉस्टल की दीवार पर चिपका टेल्को (टाटा मोटर्स) का एक विज्ञापन देखा जिसमें स्पष्ट यह लिखा था कि महिला इंजीनियर आवेदन न करें। जेआरडी के नाम एक पोस्टकार्ड पर उन्होंने इस विज्ञापन का विरोध किया। दस दिन के भीतर टेलीग्राम आया और सुधा कुलकर्णी को साक्षात्कार के लिए बुला लिया गया। कम्पनी में काम करते हुए एक शाम जब वे घर जाने के लिए अपने पति का इंतजार कर रही थीं तो वहाँ से गुजरते हुए जेआरडी ने सुधा कुलकर्णी के साथ उनके पति की तबतक प्रतीक्षा की जबतक उनके पति आ नहीं गए। एक समय बाद जेआरडी ने सुधा के कम्पनी छोड़ने के निर्णय पर आशीर्वाद दिया और सुधा व उनके पति नारायणमूर्त्ति ने फिर इंफोसिस की नींव रखी। एक बेहद मशहूर किस्सा दिलीप कुमार का भी है जिसका जिक्र उनके जीवनीकार ने भी किया है । दिलीप कुमार अपने कैरियर के चरम पर थे और हवाई जहाज से सफर कर रहे थे। जहाँ सभी सहयात्री उनसे उनका हस्ताक्षर लेने को बेताब थे वहीं उनके साथ बैठा सहयात्री अप्रभावित हो अख़बार पढ़ रहा था तो कभी खिड़कियों से बादलों को निहार रहा था। दिलीप कुमार ने बात करने की कोशिश की और उस सहयात्री से सामान्य बातचीत हुई। उतरते वक्त दिलीप कुमार ने हाथ मिलाते हुए कहा कि- मेरा नाम दिलीप कुमार है। उस सहयात्री ने मुस्कुराते हुए कहा-मेरा नाम जेआरडी टाटा है। दिलीप कुमार कहते हैं कि अपने पूरे जीवन भर मुझे नम्र रहने की सीख मिली क्योंकि इस दुनिया में आपसे बड़ा कोई न कोई होता ही है। फ़्रांस ने जेह की उपलब्धियों पर जहाँ अपना सर्वोच्च सम्मान लीजियन ऑफ़ ऑनर प्रदान किया वहीं भारत में भी उन्हें ‘पद्म विभूषण’ के बाद ‘भारत रत्न’ से विभूषित किया गया। १९९३ में अंतिम सांस लेने वाले जेआरडी टाटा कहते थे कि- भारत आर्थिक शक्ति बने इससे कहीं अधिक जरूरी है कि देश अपना खुशहाल बने। 

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