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Wednesday, June 27, 2018

राजनीतिक दल से उम्मीदों की प्रश्नावली



देर-सबेर सभी राजनीतिक दल यह एहसास करा ही देते हैं कि उनका मकसद सत्ता भोगना ही है। एक समर्पित कार्यकर्त्ता को फिर दुसरे दलों के पुराने करतूतों का कच्चा-चिट्ठा रखने के अलावा और कुछ सूझता नहीं है। कई बार कार्यकर्ता व्यक्तिगत दुश्वारियाँ और दुश्मनी पाल लेते हैं और अक्सर चुनाव के बाद जब उनके राजनीतिक आका आपस में गलबहियाँ कर लेते हैं तो उस वक्त दिल में कहीं नश्तर सा लगता है और दुनिया के बड़े ज़ालिम होने का एहसास होता है। राजनीतिक दल अपनी परिभाषा में ही सत्ता के लिए संघर्षशील होते हैं, तो सत्ता के लिए संघर्ष करने में कोई बुराई नहीं है। किन्तु राजनीतिक दल, महज सत्ताप्राप्ति के ही निमित्त नहीं होते हैं। हाँ, यह अवश्य ही है कि सत्ताप्राप्ति ही उनका एकमात्र ध्येय बनकर रह गया है। 

संविधान सभा की मंशा यह नहीं थी कि नागरिक, किसी दल विशेष के होकर रह जाएँ। देश के भीतर अनगिनत मुद्दे होते हैं और वे मुद्दे अपनी बदलती प्राथमिकता और प्रासंगिकता में परिदृश्य पर उभरते हैं। किसी मुद्दे के सार्थक निस्तारण हेतु सम्यक नीति और कार्ययोजना की आवश्यकता होती है जिससे अधिकतम नागरिकों का वृहत्तम हित सधे। एक राजनीतिक दल में भाँति-भाँति के लोग मिलकर देश के सभी आवश्यक मुद्दे पर अपने दल के लिए एक एकीकृत नीति और कार्ययोजना गढ़ते हैं। नीतियों में अन्तर्निहित विरोधाभास न हो इसलिए राजनीतिक दल अपना एक वृहद् उद्देश्ययोजना तैयार करते हैं। इससे ही उस राजनीतिक दल की प्रकृति और चरित्र का निर्धारण होता है। किसी भी मुद्दे का कोई एक अंतिम निस्तारणनीति और कार्ययोजना नहीं हो सकता। इसलिए ही किसी देश में एक से अधिक राजनीतिक दलों की गुंजायश बनाई जाती है। भारत में विविधता अन्याय स्तरों पर है तो यहाँ बहुदलीय दल अनिवार्य ही हैं जिससे सभी विविधताओं को स्वर मिले और वे एक सिम्फनी में राष्ट्र के लिए कार्य कर सकें। एक नागरिक, किसी दल विशेष की वृहद् कार्ययोजना, उसकी नेतृत्व शक्ति एवं सांगठनिक क्षमता से प्रभावित होकर उसकी प्राथमिक सदस्यता लेकर अपनी भूमिका सुनिश्चित कर सकता है। यह उसका अधिकार है। लेकिन इससे उसके व्यक्तित्व पर कोई लेबल लगाना ठीक नहीं है। वह चाहे जब उस दल से अलग हो सकता है। वह सामान्य मतदाता बने रह सकता है अथवा वह किसी दूसरे दल की सदस्यता ले सकता है। 

प्रश्नों की एक चेकलिस्ट बनाई है मैंने, जिससे हम यह जान सकते हैं कि एक मतदाता और एक राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में हम तथा कोई राजनीतिक दल कितने खरे उतरते हैं। यह चेकलिस्ट अनंतिम है, पर उपयोगी है। इस बेहद आवश्यक कसौटी से हर नागरिक को जरूर गुजरना चाहिए: 


एक मतदाता के रूप में 

१. क्या अमुक राजनीतिक दल ने यदि राष्ट्रीय स्तर का है तो देश के लिए और यदि प्रांतीय स्तर पर है तो उस राज्य के लिए वृहद् उद्देश्ययोजना निर्मित की है? क्या आपने उसे कभी पढ़ा है?
२. क्या उसमें देश/प्रांत स्तर की सभी महत्वपूर्ण समस्याएँ हैं?
३. समस्याओं के वर्गीकरण में क्या सभी देश/प्रांत के सभी विभिन्नताओं का सम्यक प्रतिनिधित्व है?
४. समस्याओं के निस्तारण नीति उपलब्ध है?
५. क्या आपने निस्तारण नीतियों की परख के लिए किसी चर्चा में परिभाग किया है?
६. निस्तारण नीतियों के कार्ययोजनाओं में क्या देश/प्रांत के सभी विभिन्नताओं का सम्यक प्रतिनिधित्व है?
७. क्या राजनीतिक दल के सदस्य चुनाव के अलग समयों में आपसे मिलते हैं?
८. क्या आपने राजनीतिक दल के सदस्यों से अपनी समस्याएँ साझा की हैं? 
९. क्या आपको समस्याओं के हल की कोई योजना राजनीतिक दल के द्वारा सुझाई गयी या आश्वासन ही मिला?
 १०. क्या अमूमन यही होता है कि आपके क्षेत्र से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दे राजनीतिक दल निर्धारित करते हैं? अथवा उस क्षेत्र विशेष के मतदाता वहाँ के मुद्दे निर्धारित करते हैं और राजनीतिक दल उसे अपना मुद्दा बनाकर संघर्ष करते हैं?
११. राजनीतिक दल के सदस्यों, नेताओं का मतदाताओं से चुनाव से इतर व्यवहार कैसा है? क्या वे सुलभ हैं?
१२. किसी राजनीतिक-सामाजिक हल की प्रक्रिया में अमुक राजनीतिक दल की कार्ययोजना समावेशी है अथवा एकांतिक है ? एकांतिक समाधान सामाजिक विखंडन को न्यौता देते हैं।  
१३. राजनीतिक दल के सदस्य स्वयं लाभ को वरीयता देते हैं या क्षेत्रहित को वरीयता देते हैं?
१४. सांविधानिक तौर-तरीकों में उस दल-विशेष की कितनी आस्था है?
१५. सार्वजनिक संपत्ति के साथ उस राजनीतिक दलों के सदस्यों का कैसा बर्ताव है?
१६. क्या आप जांचते हैं कि क्षेत्र के किसी नेता और राजनीतिक दलों के सदस्यों की आपराधिक पृष्ठभूमि कैसी है?
१७. क्या आप किसी राजनीतिक दल के वादों की सम्यक समीक्षा करते हैं?
१८. क्या आपके पास दलों का मैनिफेस्टो होता है?
१९. मैनीफेस्टो की गुणवत्ता कैसी है?क्या उसमें आपके क्षेत्र, प्रांत, राष्ट्र की समस्याओं का उचित प्रतिनिधित्व एवं सम्यक निस्तारण रीति स्पष्ट है?
२०. प्रति चुनाव मैनीफेस्टो में क्या कोई गुणात्मक परिवर्तन है?

एक दल-विशेष के सदस्य के रूप में 

१. क्या आपका राजनीतिक दल चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित रीति से पंजीकृत है?
२. क्या आपके पास उस राजनीतिक दल की सदस्यता का प्रामाणिक पत्र है?
३. क्या आपका राजनीतिक दल राष्ट्र की मूलभूत अवधारणा में यकीन रखता है?
४. क्या आपका राजनीतिक दल संविधान में और सांविधानिक प्रक्रियाओं में आस्था रखता है?
५. क्या आपका राजनीतिक दल लोकतंत्र में यकीन रखता है और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को प्रायोगिक एवं दार्शनिक दोनों स्तरों पर मान्यता देता है?
६. क्या राजनीतिक दल के भीतर लोकतंत्र है?
७. क्या आपका राजनीतिक दल आपको स्पष्ट करता है कि वह क्यों सत्ता प्राप्त करना चाहता है?
८. क्या आपका राजनीतिक दल राष्ट्र/प्रांत/क्षेत्र से जुड़े मुद्दों के निर्धारण में आपकी राय को महत्ता देता है?
९. क्या आपके राजनीतिक दल में जनता के मुद्दों को पहचानने एवं उसके हल की कार्ययोजना को लेकर कोई आयोजना है और क्या आप इससे परिचित हैं?
१०. आपके राजनीतिक दल में विभिन्न मुद्दों को लेकर आवश्यक शोध की व्यवस्था है?
११. क्या आपका राजनीतिक दल समावेशी है?
१२. क्या आपका राजनीतिक दल आपके असहमतियों को स्थान देता है और तदनुरूप अपनी कार्ययोजनाओं में तब्दीलियाँ करता है?
१३. क्या आपका राजनीतिक दल अनैतिक कृत्यों की संस्तुति सत्ता प्राप्ति के लिए करता है?
१४. क्या आपके दल के सदस्यों को लेकर लोकतांत्रिक समानता बरती जाती है?
१५. क्या आपके राजनीतिक दल के निर्णय सामान्य सभा लेती है अथवा यह किसी एक व्यक्ति में निहित है?
१६. क्या आपका राजनीतिक चंदों और बहीखातों को लेकर पारदर्शी है? क्या सभी जानकारियाँ पब्लिक डोमेन में हैं?
१७. क्या आपका राजनीतिक दल राजनीतिक शुचिता के लिए लोकतांत्रिक रीति से अनुशासनात्मक कार्यवाहियाँ बिना किसी भेदभाव के करता है?
१८. क्या आपके राजनीतिक दल में महत्वपूर्ण पदों और निर्णयों के लिए किसी खास वर्ग, समूह, जाति, समुदाय अथवा परिवार की ओर देखना होता है?
१९. क्या आपका राजनीतिक दल अपनी नीतियों और कार्ययोजनाओं को समकालीन चुनौतियों के अनुरूप अद्यतन करता है?
२०. क्या आपके राजनीतिक दल के सभी सदस्य अपने कृत्यों के लिए जनता और आपके लिए जवाबदेह हैं? 


यह कसौटी अपने विषयों में अंतिम नहीं है। किसी राष्ट्र की प्रगति का दारोमदार उस राष्ट्र की राजनीति पर होता है। राजनीति बड़े ही महत्त्व का विषय है। लोकतंत्र में सबसे बड़ी जिम्मेदारी नागरिक की होती है। नागरिक जितना ही मौन और उदासीन होता है, उसके राष्ट्र की राजनीति उतनी ही असह्यनीय, अश्लील और गैर-जिम्मेदार होती है। एक बार जरा मतदाता अथवा किसी राजनीतिक दल के सदस्य के रूप में इन कसौटियों के समक्ष स्वयं को और अपने राजनीतिक दल को रखिये, लगभग तुरत ही स्पष्ट हो जायेगा कि हमारा प्यारा देश क्यों प्रगति के उस सोपान पर चढ़ने की बजाय राजनीतिक अवनति को प्राप्त हो रहा। जवाब इसका भी मिलेगा कि आखिर क्यों राजनीतिक दल सत्ता में आते ही जनता के नहीं उद्योगपतियों के हो जाते हैं और यह भी कि क्यों राजनीतिक दल नागरिकों को व्यक्ति के रूप में नहीं बल्कि वोटबैंक के रूप में देखते हैं। मुझे उम्मीद है कि इस प्रश्नावली से एक उत्तर और मिलेगा कि आखिर क्यों एक राजनीतिक दल सत्तासुख भोगने के बाद बिना कोई ठोस जनहित के काम किये बिना ही अगले चुनाव के सीटों का अश्लील लक्ष्य रखता है और उसे क्यों मतदाताओं से अधिक अपने चुनाव-मैनेजमेंट टीम पर यकीन होता है ?देखिये जरा, कहीं कोई हमें बस मैनेज तो नहीं कर रहा?   

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