साभार: अमर उजाला |
भारत, नेपाल और चीन की भौगोलिक विन्यासों में स्थलबद्ध भूटान आज (18.10.18) अपने शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक सत्ता-हस्तांतरण के तीसरे संस्करण की भूमिका लिखने वाला है। भूटान के संविधान के अनुसार आम चुनाव दो चरणों में होते हैं। पहले चरण में मतदाता विभिन्न दलों में से अपने पसंद के दल चुनते हैं। सर्वाधिक पसंद किये गए केवल दो दलों के उम्मीदवारों को ही दूसरे चरण में भूटान के 20 जिलों से उम्मीदवारी का मौका मिलता है। राष्ट्रीय सभा (चोगदू) के निम्न सदन के 47 सीटों में से अधिकांश पर विजयी दल के नेता को भूटान के राजा द्वारा प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है। इस बार के पहले चरण में विगत 15 सितंबर को हुए चुनाव में भूटान की जनता ने सभी को चौंकाते हुए भारत के प्रति उदार रुख बरतने वाली सत्तारूढ़ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) को तीसरे स्थान पर खिसकाते हुए अगले चरण से ही बाहर कर दिया और छह साल पुराने अपेक्षाकृत नये दल ड्रूक न्यामरूप चोगपा (डीएनटी) को पहले स्थान पर और 2008 के पहले आम चुनाव को जीतने वाले ड्रूक फियंजम चोगपा (डीपीटी) को दूसरे स्थान पर अपना पसंदीदा दल करार दिया। दूसरे चरण में मुकाबला डीएनटी और डीपीटी दलों में होना है। डीपीटी दल से देश के पहले प्रधानमंत्री रहे जिग्मे थिनले को जून 2012 में रियोडीजेनेरियो में चीनी प्रीमियर वेन जियाबाओ से की गयी मुलाकात के बाद से कूटनीतिक हलकों में उन्हें चीन के प्रति उदार रुख बरतने वाला समझा गया। जिसके बाद एक महीने के लिए भारत से भूटान को दी जा रही गैस सब्सिडी तकनीकी कारणों से अवरुद्ध हो गयी थी। देश के दूसरे आम चुनाव 2013 में विपक्षी दल पीडीपी ने अन्य प्रासंगिक मुद्दों के साथ-साथ सत्तारूढ़ डीपीटी की नीतियों से भारत-भूटान पारंपरिक सुघड़ संबंधों में आ सकने वाली खटास को मुद्दा बनाते हुए तब चुनाव जीत लिया था।
आमतौर पर शांत रहने वाले इस प्राकृतिक सुरम्य देश भूटान के लिए पिछले पाँच साल काफी घटनापूर्ण रहे। अपने पूर्ववर्ती जिग्मे थिनले की वैश्विक विदेश नीति से अलग पीडीपी दल से नियुक्त प्रधानमंत्री चेरिंग चोबगाय ने क्षेत्रीय संबंधों और खासकर भारत से अपने संबंधों को प्राथमिकता दी। देश की अर्थव्यवस्था में अपेक्षाकृत सुधार हुआ और भूटान ने संबंधों में एक नैरंतर्य बनाये रखा। लेकिन चोबगाय ने स्वीकार किया था कि उनके देश को प्रसिद्ध ‘ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस’ के चश्मे से देखना त्रुटिपूर्ण होगा, बेरोजगारी, बढ़ता ऋण, भ्रष्टाचार और गरीबी भूटान के बड़े मुद्दे हैं और इनकी अनदेखी कोई सरकार नहीं कर सकती। चोबगाय कार्यकाल में ही चीन ने भूटान से की गयी अपनी सीमा सहमति का उल्लंघन करते हुए दोकलाम क्षेत्र जो कि भारतीय सामरिक दृष्टिकोण से बेहद अहम है, पर अवैध निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया, जिससे भूटान-चीन-भारत के मध्य तकरीबन सत्तर दिनों तक तनातनी बनी रही। भारत के लिए बेहतरीन बात इसमें यह रही कि भूटान ने एक स्पष्ट रुख लिया और कहता रहा कि उल्लंघन चीन की ओर से हुआ। नेपाली मूल के भूटानी लहोतशम्पाओं का निर्वासन भी एक तनाव का मुद्दा है, जिससे भूटान को नेपाल के साथ मिलकर सुलझाना होगा अन्यथा यह मुद्दा गंभीर सुरक्षा का सबब बन सकता है।
आज के चुनावों पर भारत चीन और नेपाल की भी दृष्टि है कि आखिर भूटान की जनता एक नए दल डीएनटी को चुनती है अथवा देश को पहला प्रधानमंत्री देने वाले दल डीपीटी को फिर एक बार यह मौका देती है। वैसे यह भी एक तथ्य है कि इसबार के चुनाव माहौल में 2013 की भाँति भारत कोई विशेष मुद्दा नहीं बना। प्रथम चरण में शामिल चारो दलों के चुनावी घोषणापत्रों में बल्कि भारत की चीन के मुकाबले अहमियत स्पष्ट दिखी। परंपरागत रूप से भूटान की वैदेशिक नीति पहले ब्रिटिश भारत और फिर 2007 के पहले तक स्वतंत्र भारत ही तय करता रहा है। नवीन लोकतांत्रिक भूटान, अपनी संप्रभुता के एक महत्वपूर्ण आयाम के रूप में स्वतंत्र विदेश नीति के लिए निश्चित ही प्रयास करेगा जिसमें भारत से उसके संबंध प्रगाढ़ बने रहें और चीन सहित अन्य शक्तियों से भी एक संतुलन सधा रहे। निवेश की आकांक्षा से अपने उत्तर-पूर्व पड़ोसी चीन के प्रति आकर्षण से भूटान इसलिए भी स्वयं को बचाता है क्योंकि भारत के उसके संबंध बेहद विश्वासपूर्ण रहे हैं तथा दोकलाम के बाद तो चीन की साख इन अर्थों में संदिग्ध ही रही है। इसलिए ही इतना तो विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि भूटान में चाहे डीएनटी अथवा डीपीटी की सरकार बने, भारत से भूटान के संबंध सकारात्मक रूप से प्रगाढ़ ही होंगे।
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