बहुत ही सकारात्मक होकर लिख रहा हूँ।
अभी मैंने राहुल गाँधी जी को ट्विटर पर फॉलो किया। मुझे आश्चर्य हुआ कि अभी तक मैं उन्हें फॉलो नहीं करता था। आज मेरा मन हुआ कि लेख लिखने से पहले यह देखा जाय कि उनका ट्विटर हैंडल इस ताजपोशी को कैसे हैंडल कर रहा है। पता चला मेरे जैसा राजनीतिक चातक भी उन्हें फॉलो तक नहीं करता है। वैसे, यह अनायास था, मुझे राहुल गाँधी की गतिविधियों के लिए ट्विटर जरुरत ही नहीं थी। दरअसल राहुल गाँधी ने पिछले तेरह सालों में जो अपनी जमीन बनाई है और जैसी भी बनाई है, उसमें उनके भाषणों का कोई योगदान नहीं है। आस्तीन चढ़ाया हुआ एक उत्साही नवयुवक, अपनी पार्टी को इधर-उधर से खेता हुआ, डुबोता-उबारता हुआ और यत्र-तत्र दिखाई देता हुआ।
भले ही दुनिया का सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र अमेरिका ओबामा को अपना राष्ट्रपति चुन लेता है, महज अड़तालीस की उमर में पर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में सैतालिस की उमर एक नौसिखिये की ही मानी जाती है। किन्तु अब जबकि आज राहुल गाँधी की कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हो चुकी है, यह विमर्श बेमानी है कि राहुल गाँधी का व्यक्तित्व कैसा है अथवा वह कितने योग्य हैं या यह ही कि वंशानुगत राजनीति के अगले चमचमाते चेहरे के रूप में राहुल गाँधी को गंभीरता से लिया भी जाय अथवा नहीं। हम जिस तरह की राजनीतिक संस्कृति में हैं, उसका सच यह है कि भाजपा के बाद कांग्रेस ही है जो भारत की सर्वाधिक जनता का प्रतिनिधित्व करसकने की स्थिति में  है और बहुदलीय प्रणाली वाले इस देश में एक प्रकार की यह विकल्पहीनता ही है। इस विकल्पहीनता के कारण ढेरों हैं और ज्यादातर की तह में हम नागरिक स्वयं हैं, किन्तु अब यह समय राहुल गाँधी को बधाई देने के बाद उन उम्मीदों की पड़ताल करने का है, जो उनसे सहज ही अपेक्षित हैं।  
कांग्रेस पार्टी के इतिहास में राहुल संभवतः पहले ऐसे गाँधी होंगे, जिनकी ताजपोशी इतनी नियोजित और शांति से हुई है। नेहरू जी के अवसान के बाद इंदिरा गाँधी का पदार्पण एक जटिल रीति से हुआ।  इंदिरा गाँधी के अवसान के बाद राजीव गाँधी को यह विरासत आनन-फानन में सम्हालनी पडी. राजीव गाँधी के बाद सोनिया गाँधी ने यह विरासत उस समय में सम्हाला जब कांग्रेस की स्थिति डंवाडोल थी और दुसरी ओर भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी एक चमचमाते नक्षत्र की भांति जगमगा रहे थे। कांग्रेस की पूरी आलाकमान निवेदन मुद्रा में सोनिया गाँधी पर नेतृत्व के लिए नैतिक दबाव बना रही थी। राहुल ही ऐसे गाँधी हैं जिन्हें पार्टी अध्यक्ष का ताज इतने लम्बे तेरह साल के राजनीतिक अनुभव के बाद सौपा गया है। भविष्य कैसा होगा, कुछ यकीनन नहीं कहा जा सकता, पर यह भी सच है कि राजनीतिक कैरियर की शुरुआत न इंदिरा की , न राजीव की और न ही सोनिया गाँधी की ही प्रभावशाली रही है। ऐसा नहीं है कि इस पैटर्न के हिसाब से राहुल गाँधी भविष्य में सफल होना तय है; किन्तु सफलता की सम्भावना को ख़ारिज नहीं ही किया जा सकता। हाल-फ़िलहाल न राजनीतिक संस्कृति में परिवर्तन होने वाला है और न आम नागरिकों के गुणधर्म में और न ही कांग्रेस पार्टी अप्रासंगिक होने वाली है सो राहुल गाँधी से उम्मीदों की पड़ताल जरूरी तो है ही, प्रासंगिक भी है।
पहली उम्मीद तो यही है कि राहुल गाँधी, कांग्रेस को एक सशक्त विपक्ष के रूप में उभरने में मदद देंगे। इतना सभी समझते हैं कि किसी बेहतर सरकार के ऊपर भी सशक्त विपक्ष की आलोचनाओं का अंकुश लोकतंत्र के लिए आवश्यक है। इसके लिए कांग्रेस को रचनात्मक आलोचना की की परम्परा अपनानी होगी और जमीनी मुद्दों की खोज करनी होगी। राहुल गाँधी की अपनी भाषा फ़िलहाल संयत रही है और उम्मीद की जानी चाहिए कि इनके नेतृत्व की कांग्रेस पार्टी की भाषा भी मर्यादित रहेगी। इससे पहले कि आम राजनीति बाजारू भाषा के कारण महज चुटकुलों का स्रोत बने, राहुल स्वयं को उदाहरण बनाकर इसे स्थापित करने का प्रयास करेंगे। देश की विपुल धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत का ध्यान रखते हुए, जिसका कि (धर्मनिरपेक्षता के झंडे के साथ) कांग्रेस को बहुत मान भी है, उम्मीद है कि भविष्य में राहुल अपना जनेऊ जनता को दिखाने की उतावली नहीं दिखाएंगे। देश केवल हिन्दुओं का नहीं है, ऐसा संविधान गढ़ते हुए हिन्दू महासभा के प्रतिनिधियों ने भी स्वीकार किया था, सो धर्मनिरपेक्षता की यह पहचान किसी भी प्रकार के मुस्लिम अथवा हिन्दू तुष्टिकरण के चक्कर में गंवाएंगे नहीं, ऐसी शुभाशा है। यों तो सैद्धांतिक दृष्टिकोण से भी राजनीतिक दल का पहला उद्देश्य सत्ता प्राप्ति है, पर फिर भी इस मौके पर यह उम्मीद की जा सकती है कि सत्ता प्राप्ति के संघर्ष में धर्म, जाति, संस्कृति को फ़िलहाल अबसे प्रयोग में नहीं लाया जायेगा। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के निमित्त जनहित के मुद्दे जनता के बीच से उठाये जायेंगे।  
उम्मीद यह भी है कि आपके पास भारत सरकार की समस्त नीतियों के समानांतर एक वैकल्पिक नीतियों का विमर्श होगा ताकि आपकी पार्टी सशक्त विपक्ष भी बन सके और समय आने पर यदि सत्ता हाथ लगे तो देश का विकास निर्बाध चलता तो रहे। उम्मीद यह भी की जानी चाहिए कि चुनाव सुधार के मुद्दों पर भी आपका ध्यान जायेगा ताकि देश का लोकतंत्र मजबूत हो। कांग्रेस अगर राहुल गाँधी की ताजपोशी के बाद भी आलाकमान की पार्टी बनी रही फिर तो कोई उम्मीद नहीं रहेगी कि इस ताजपोशी का एक सामान्य नागरिक के लिए कोई महत्त्व रहे, पर इस अवसर पर इतनी आशा अवश्य है कि भारतीय राजनीति में युवाओं का स्वागत हो और आलोचना का सम्मान भी।
इतिहास की समझ यह सीखाती है कि न तो कोई व्यक्तित्व कमजोर होता है और न ही कोई परिस्थिति ही इतनी कमजोर होती है कि वह किसी कालविशेष को ऐतिहासिक बनाने में अक्षम हो। इस आलोक में मै, राहुल गाँधी को बधाई देता हूँ  करता हूँ कि कम से कम वे इस सकारात्मक पथ की ओर कदम तो बढ़ाएंगे !!!
*एक आशावान नागरिक