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Friday, December 22, 2017

यूरोप ने आज के अपने स्वैग के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकाई है, खून से अपने बर्फ बार बार रंगें हैं...!

एशिया के बाद दो भाग में देखें विश्व राजनीति में यूरोप !



चौबीस घंटे की एक क्लॉक से अगर अपनी पृथ्वी की अभी तक की जिंदगानी को दिखाने की कोशिश हो तो हम इंसानों  की औकात महज इतनी है कि 00:00 से शुरू हुई घड़ी में हम तकरीबन 11:58 पर अवतरित हुए। पर लगता यों है कि हिस्ट्री हमीं से है, इस जहान की । उसमें भी पिछले दो-तीन सौ साल से यूरोप का चैप्टर चल रहा और लगता यही है कि जैसे दुनिया का सारा ‘फर्स्ट’ यहीं से बिलोंग करता है। सत्ता जिसकी होती है, उसी का रहन-सहन होता है, उसी का भौकाल होता है, उसी की भाषा होती है और उसी की परिभाषा होती है। सुबूत ये है हुजूर कि, इवेन इस आर्टिकल में भी अगर अंगरेजी के वर्ड्स निकाल प्योर हिंदी के डाल दें, तो इसे बोझिल लगना चाहिए । इतिहास का पिता हेरोडोटस को मानना होता है जो यूरोप के एक देश ग्रीस का निवासी था। हम पढ़ते हैं कि अमेरिका की खोज कन्फ्यूज्ड क्रिस्टोफर कोलम्बस ने की जो इंडिया ढूंढते-ढूंढते कैरिबियाई द्वीपों से जा टकराया। अमेरिका पहले भी वहीं था, पर यूरोप के देश इटली के नाविक को पहली बार मिला तो अमेरिका की खोज हुई। यों ही आखिरकार भारत की भी खोज हुई, क्यूंकि पुर्तगाली नाविक वास्को डी गामा को ये देश पहली बार मिला। इंडिया का भौकाल समझिये, कि 20 मई 1498 को केरल के कप्पडु क्षेत्र में उतरने के करीब 8000 किमी दूर ही अफ्रीका के जिस द्वीप से कोलम्बस इंडिया को पहली बार देख पाया, खुशी में उस द्वीप का नाम ही केप ऑफ़ गुड होप रख दिया। सिक्का यूरोप का होगा तो टकसाल भी यूरोपियन होगी और करेंसी (चलन ) में वही होगा जो यूरोप का होगा।



कनाडा से महज दो प्रतिशत बड़ा है, पर महाद्वीप तगड़ा है यूरोप। दुनिया का दूसरा सबसे छोटा महाद्वीप यूरोप है पर इसमें दुनिया का सबसे बड़ा देश रूस है और दुनिया का सबसे छोटा देश वेटिकन सिटी भी है। आस्ट्रेलिया से थोड़े ही बड़े इस महाद्वीप में पचास देश हैं, बोली जाने वाली ढाई सौ से अधिक भाषाएँ हैं और एक सौ साठ से अधिक कल्चरल आइडेंटिटिज हैं। दुनिया में सबसे धनी है यूरोप और आज के ख्वाबों भरी ज़िंदगी की हकीकत है यूरोप। दुनिया के सर्वाधिक विकसित देश यहीं हैं और मान लीजिये कि यहाँ के गरीबों का कूड़ा अगर दुनिया के कुछ देशों में पहुंचा दिया जाय तो वे अपने देश के अमीरों में होंगे।दुनिया का हर भाग्यशाली बारहवां आदमी यूरोप में रहता है। क्रिस्टोफर मार्लोवी के शब्दों में - कि जैसे, इनफाइनाइट दौलत एक रूम में बंद हो। पेरिस यहीं, लन्दन यहीं, बर्लिन यहीं, रोम यहीं, यश चोपड़ा के शिफॉन साड़ियों वाला स्विट्जरलैंड यहीं, हॉलीवुड यहीं, डिज्नीलैंड यहीं और अपने अनुष्का वाले कैप्टन विराट ने भी यूरोप का वह देश चुना अपने शादी और हनीमून के लिए जहाँ से यूरोप के दूसरे सबसे पुराने एम्पायर, रोमन एम्पायर की शुरुआत हुई, यानी इटली।धरती के महज दो प्रतिशत धरातल वाले यूरोप में दुनिया में देशों के न्याय सुनाने वाला इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस, हेग भी यही हैं।  

दुनिया को साइंस का मॉडर्न लेसन देने वाले यूरोप के नाम की कहानी तक वेरी कन्फ्यूजिंग है। इसे ग्रीक मिथोलॉजी में यूरोपा नाम की राजकुमारी और ज्यूस की एक रानी के नाम से लिया गया। ग्रीक शब्द से चलें तो इसका मतलब वाइड, ब्रॉड माने विस्तृत होगा, पर सीरियन वार्ड एरेब से इसकी उत्पत्ति मानें तो इसका मतलब सनसेट होगा। शुरू में जब यह शब्द किसी प्लेस के लिए इस्तेमाल में आया तो इस यूरोप से मतलब उत्तरी अफ्रीका से था फिर धीरे धीरे यूरोप का आधुनिक अर्थ बना। अगर दुनिया भगवान ने बनाई तो यकीन करना मुश्किल है कि कभी यूरोप को इतना बुलंद करने की सोची हो उसने । क्योंकि सोचिये न, चारो तरफ से दुनिया के बाकी हिस्सों से कटा हुआ है यूरोप।  बर्फीला आर्कटिक इसे सर्द बनाये रखता है। विशाल अटलांटिक इसे पश्चिम के प्राकृतिक स्रोतों भरपूर अमेरिका महाद्वीप से वंचित रखता है तो मेडीटीरियन सी से यह मिनरल्स वाले अफ्रीका से कट जाता है। यूराल पहाड़ इसे पूरब के एशिया से अलग करके रखता है। जब यह ही न पता हो कि पृथ्वी गोल है या चपटी, और सूरज घूमता है कि पृथ्वी चक्क्र काटती है सूरज के, तो फिर ये सोचना कि एक दिन यूरोप के देश ऐसे शिप बनाएंगे कि वे पृथ्वी के एक-तिहाई लैंड से निकलकर दो-तिहाई वाटर को तैरते हुए  पृथ्वी के चक्कर पे चक्कर लगाएंगे; यह किसी किसी ऊँघती दुपहरी में देखे जाने वाले अटपटे बेतरतीब सपने से कहीं अधिक न था। पर, जनाब ! ये हुआ और इसलिए ही आज यूरोप ड्रीमलैंड है। सब बस अच्छा ही है, यूरोप में, ऐसा नहीं है, पर बाकी दुनिया के महाद्वीपों के मुकाबले यकीनन यूरोप की स्थिति यकीनन बेहतर है।

यूरोप ने आज के अपने स्वैग के लिए बहुत बड़ी कीमत चुकाई है, खून से अपने बर्फ बार बार रंगें हैं। और एक ज़माने में से ही यूरोप में रहने वाली जातियों को बारबेरिक माना जाता रहा और आज भी यूरोप ने वह बारबेरिज्म खोया नहीं है बस मॉडर्न सिविलाईजेशन के अधखुले कपडे से इसे ढँक रखा है। उस कहानी को आइये फिर दुहराते हैं जो इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इकोनॉमिक-कल्चरल सिक्का अभी भी यूरोप का ही करेंसी में है। जीसस के करीब 1200 साल पहले फेमस ट्रॉय-स्पार्टा वार हुआ। जीसस के जनम के साढ़े आठ सौ साल पहले होमर हुआ जिसने आधुनिक दुनिया का पहला महाकाव्य इलियड और ओडिसी लिखा। फिर 776 बीसीई में ओलम्पिक खेल शुरू हुए और समझिये कि यूरोप की काशी रोम बसी ईसा से तकरीबन 750 साल पहले। ग्रीक एम्पायर पर पर्सिया ने आक्रमण किया ईसा के धरती पर आने के भी ठीक 500 साल पहले और यह लड़ाई अगले दो सौ और साल चलने वाली थी। बहरहाल, यूरोप महाद्वीप ने महान ग्रीक एम्पायर देखा और फिर महान रोमन एम्पायर देखा।

जीसस के इस दुनिया से विदा होने के बाद उनके कहे शांति संदेशों पर चर्च कुंडली मारकर बैठ गया और पॉलिटिक्स की कमान रिलिजन के सम्हालते ही यूरोप इतिहास के अपने मध्ययुग में आ पहुंचा। आज की पॉलिटिक्स अभी जितना क्रूर होने के लिए सोचेगी, रीलिजन ने वे हदें शताब्दियों पहले से ही तोड़नी शुरू कर दी थीं। ईसा मसीह की मृत्यु के 632 साल बाद एक नए रीलिजन इस्लाम के मसीहा मुहम्मद साहब की मृत्यु हुई और इस्लाम आज यूरोप का ही दूसरा प्रमुख रीलिजन नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का दूसरा बड़ा रिलिजन है। मध्य युग के यूरोप की कमान चर्च के पास थी। यूरोप से निकलकर चर्च ने रिलिजन के नाम पर क्रूसेड करने शुरू किये, जिसमें बेरहमी से काफिरों को मिटाया गया। तब तक मध्य एशिया से सिल्क रुट बनाता हुआ मंगोल शासक चंगिज खान बारबेरिज्म की दूसरा स्टैंडर्ड सेट करता हुआ आ पहुंचा और उसके बाद के शासकों ने सर्द यूरोप को और भी सर्द अपने हाथों से छु लिया। मध्य युग का यूरोप अंधयुग माने ब्लाइंड ऐज कहलाता है। ब्लाइंड इसलिए क्यूंकि चर्च का आदमी टिकटें बेचता स्वर्ग की और लोग टूट पड़ते खरीदने को। आज भी लोग चाँद और मंगल पर जमीन खरीद ही रहे इंटरनेट पर। उस ब्लाइंड ऐज में सारी कसौटियां चर्च सेट करता और ‘राइट’ वही माना जाता जो पोप को ‘राइट’ लगता। ठीक ऐसे ही जैसे आज मुस्लिम फ़ण्डामेंटलिस्ट को किसी सिरफिरे मौलवी की बात ‘राइट’ लगती है, किसी क्रिस्चियन फंडामेंटलिस्ट को दहशती प्रीस्ट की बात ‘राइट’ लगती है और किसी भटके हिन्दू नौजवान को किसी ढोंगी गुरु की ही बात ‘राइट’ लगती है। यों तो इस ब्लाइंड ऐज के बाद फिर रेनेसॉ और एनलाइटेन्मेंट एरा भी आया 17वीं शती तक, जिसमें एक बार फिर अंधश्रद्धा के स्थान पर रीजन और लॉजिक को महत्त्व दिया गया पर रीलीजन अभी भी इतना प्रभावशाली था कि उसने समूचे यूरोप को 1618 से 1648 तक के तीस साल के युद्धों में झोंक दिया।




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